शासन के आदेशों की उड़ाई जा रही धज्जिया जम कर हो रहा पॉलीथीन का प्रयोग
शासन के आदेशों की उड़ाई जा रही,धज्जिया जम कर हो रहा पॉलीथीन का प्रयोग
श्री न्यूज़ 24
आलोक कुमार वर्मा
गोलागोकरणनाथ खीरी
एक तरफ शासन प्रशासन पॉलीथिन के प्रयोग को बंद करने की जनमानस से अपील कर रहा है,दुकानदारों को चेतावनी दे रहा है वही दुसरी तरफ जिले में पन्नी का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा। आपको बताते चले कुछ समय पहले गोला,लखीमपुर, जलालपुर,निघासन,मोहमदी, मितौली सहित तमाम जगहों पर अभियान चलाकर पॉलीबैग को जब्त किया गया था जुर्माना भी लगाया गया इतना सब कुछ होने के बाबजूद आप आज हर सहर हर गांव हर कस्बे में पॉलीबैग को आसानी से प्राप्त कर सकते है।लगभग हर दुकानदार के पास पॉलीबैग आसानी से उपलब्ध है। शायद आप न जानते कि आज के समय मे गिरते जलस्तर का एक कारण पॉलीथिन का अंधाधुंध उपगोग भी है। पॉलीथिन मिट्टी में दबकर भी नही नष्ट होती ये जमीन की पानी को सोखने की छमता को कम करने के साथ साथ हमारे बाताबरण को नुकसान पहुचती है इसको खत्म करने का कोई तरीका नहीं है फिर भी हम चंद पैसों के लालच में प्रकृति के साथ खिलबाड़ कर रहे है ऐसा क्यों?
अब सवाल ये है कि---------?
इन छोटे दुकानदारों फेरी वालों, ठेले वालों को पॉलीबैग कहाँ से मिलते है?
पॉलीथिन रखने वाले दुकानदारों पर कार्यवाही होने के बाबजूद धड़ल्ले से क्यों उपलब्ध है पॉलीथिन बैग?
इसकी जिम्मेवार कही न कही जनता भी तो नही?
क्या इन दुकानदारों को प्रशासन का कोई डर नही?
क्या स्थानीय प्रशासन,और जिला प्रशासन को एक बार फिर पॉलीबैग के खिलाफ यद्धस्तर पर अभियान चलाकर कार्यवाही करनी चाहिये?
श्री न्यूज़ 24
आलोक कुमार वर्मा
गोलागोकरणनाथ खीरी
एक तरफ शासन प्रशासन पॉलीथिन के प्रयोग को बंद करने की जनमानस से अपील कर रहा है,दुकानदारों को चेतावनी दे रहा है वही दुसरी तरफ जिले में पन्नी का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा। आपको बताते चले कुछ समय पहले गोला,लखीमपुर, जलालपुर,निघासन,मोहमदी, मितौली सहित तमाम जगहों पर अभियान चलाकर पॉलीबैग को जब्त किया गया था जुर्माना भी लगाया गया इतना सब कुछ होने के बाबजूद आप आज हर सहर हर गांव हर कस्बे में पॉलीबैग को आसानी से प्राप्त कर सकते है।लगभग हर दुकानदार के पास पॉलीबैग आसानी से उपलब्ध है। शायद आप न जानते कि आज के समय मे गिरते जलस्तर का एक कारण पॉलीथिन का अंधाधुंध उपगोग भी है। पॉलीथिन मिट्टी में दबकर भी नही नष्ट होती ये जमीन की पानी को सोखने की छमता को कम करने के साथ साथ हमारे बाताबरण को नुकसान पहुचती है इसको खत्म करने का कोई तरीका नहीं है फिर भी हम चंद पैसों के लालच में प्रकृति के साथ खिलबाड़ कर रहे है ऐसा क्यों?
अब सवाल ये है कि---------?
इन छोटे दुकानदारों फेरी वालों, ठेले वालों को पॉलीबैग कहाँ से मिलते है?
पॉलीथिन रखने वाले दुकानदारों पर कार्यवाही होने के बाबजूद धड़ल्ले से क्यों उपलब्ध है पॉलीथिन बैग?
इसकी जिम्मेवार कही न कही जनता भी तो नही?
क्या इन दुकानदारों को प्रशासन का कोई डर नही?
क्या स्थानीय प्रशासन,और जिला प्रशासन को एक बार फिर पॉलीबैग के खिलाफ यद्धस्तर पर अभियान चलाकर कार्यवाही करनी चाहिये?
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