लोकतंत्र में उसूलों सिद्धांतों एवं विचारधारा का महत्व और बदलती राजनैतिक परिभाषा पर विशेष
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लोकतंत्र में उसूलों सिद्धांतों एवं विचारधारा का महत्व और बदलती राजनैतिक परिभाषा पर विशेष-
✒सुप्रभात-सम्पादकीय✒
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साथियोंं,
लोकतंत्र में राजनीति देश की भाग्य विधाता होती है क्योंकि राजनीति से जुड़े दल एवं उसके राजनेता ही जनप्रतिनिधि या सरकार के रूप में देश एवं देशवासियों के भविष्य का निर्धारण करते हैं।लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति उसूलो सिद्धांतों एवं विचारों पर आधारित होती है क्योंकि उसी के आधार पर राजनैतिक दलों का गठन होता है।राजनीति में उसूलों सिद्धांतों एवं विचारों का विशेष महत्व होता है और राजनेता इसी आधार पर विभिन्न राजनैतिक दलों के सदस्य बनते हैं।लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि बनने या सत्ता तक पहुंचने के लिए कभी उसूलों विचारों से समझौता नहीं किया जाता है।यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आजादी के कुछ दशक बाद से ही राजनीति की परिभाषा ही बदलने लगी है और सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के लिए राजनैतिक दल या उससे जुड़े राजनेता उसूलों सिद्धांतों एवं विचारों को महत्व न देकर समझौते को प्रमुखता देने लगे हैं।सत्ता तक पहुंचने के लिए विभिन्न विचारधारा एवं उसूलों वाले राजनैतिक दल उसूलों सिद्धांतों को बला-ये-ताख रखकर गठबंधन के रूप में राजनीति करने लगे हैं और राजनेताओं के सारे उसूल सिद्धांत स्वार्थ के वशीभूत हो गये हैं।विभिन्न राजनैतिक दलों से जुड़े राजनेता अपने क्षणिक राजनैतिक लाभ के लिये उसूलों सिद्धांतों विचारों को दरकिनार करने से गुरेज़ नहीं करते हैं।राजनीति में चुनाव के समय राजनेताओं का असली चेहरा सामने आ जाता है और चुनाव लड़ने के लिए पल झपकते ही गिरगिट की तरह रंग बदलकर पाला बदलने के साथ उसूल सिद्धांत एवं भाषा भी बदल लेते हैं।इतना ही नहीं चुनाव लड़ने एवं सरकार बनाने के लिए देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों को गले मिला लेते हैं।इस समय आगामी लोकसभा चुनावों में एक बार भी उसूलों सिद्धांतों विचारों से समझौते होने लगे हैं। राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए एक बार फिर उसूलों विचारों से समझौते करने लगे हैं।टिकट के लिए दुश्मनों को दोस्त एवं दोस्तों को दुश्मन बनाने का दौर शुरू हो गया है।भाजपाई कांग्रेसी बन रहे हैं तो कांग्रेसी भाजपाई तो सपा बसपा एक दूसरे के दोस्त बन रहे हैं।मात्र चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलने के उद्देश्य से शेर और बकरी एक घाट पर आ रहे हैं।जिन राजनेताओं के टिकट कट गये हैं वह टिकट लेकर चुनाव लड़ने के लिए किसी भी दल से समझौता करने में जरा भी हिचक नहीं रहे हैं।बेमेल राजनैतिक समझौतों का दौर शुरू हो गया है और राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए उसूलों विचारों सिद्धांतों की बलि चढ़ने लगी है।राजनैतिक दलों के अंदर चल रही वर्चस्व की लड़ाई के चलते राजनेताओं को मजबूरी में उसूल सिद्धांत बदलने पड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने विरोधियों को अपनी औकात के साथ उनकी औकात दिखाने के लिए उन्हें मजबूरी में दल ही नहीं बल्कि दिल का भी परिवर्तन करना पड़ रहा है वह फिर चाहे शत्रुघ्न सिन्हा हो चाहे जयप्रदा आदि हो।राजनीति में क्षणिक राजनैतिक लाभ के लिये उसूलों सिद्धांतों विचारों से समझौता करना लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र एवं देश के हित में कतई नहीं कहा जा सकता है।धन्यवाद।। भूलचूक गलती माफ।। सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।ऊँ भूर्भुवः स्वः------/ऊँ नमः शिवाय।।।
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भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।
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लोकतंत्र में उसूलों सिद्धांतों एवं विचारधारा का महत्व और बदलती राजनैतिक परिभाषा पर विशेष-
✒सुप्रभात-सम्पादकीय✒
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साथियोंं,
लोकतंत्र में राजनीति देश की भाग्य विधाता होती है क्योंकि राजनीति से जुड़े दल एवं उसके राजनेता ही जनप्रतिनिधि या सरकार के रूप में देश एवं देशवासियों के भविष्य का निर्धारण करते हैं।लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति उसूलो सिद्धांतों एवं विचारों पर आधारित होती है क्योंकि उसी के आधार पर राजनैतिक दलों का गठन होता है।राजनीति में उसूलों सिद्धांतों एवं विचारों का विशेष महत्व होता है और राजनेता इसी आधार पर विभिन्न राजनैतिक दलों के सदस्य बनते हैं।लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि बनने या सत्ता तक पहुंचने के लिए कभी उसूलों विचारों से समझौता नहीं किया जाता है।यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आजादी के कुछ दशक बाद से ही राजनीति की परिभाषा ही बदलने लगी है और सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के लिए राजनैतिक दल या उससे जुड़े राजनेता उसूलों सिद्धांतों एवं विचारों को महत्व न देकर समझौते को प्रमुखता देने लगे हैं।सत्ता तक पहुंचने के लिए विभिन्न विचारधारा एवं उसूलों वाले राजनैतिक दल उसूलों सिद्धांतों को बला-ये-ताख रखकर गठबंधन के रूप में राजनीति करने लगे हैं और राजनेताओं के सारे उसूल सिद्धांत स्वार्थ के वशीभूत हो गये हैं।विभिन्न राजनैतिक दलों से जुड़े राजनेता अपने क्षणिक राजनैतिक लाभ के लिये उसूलों सिद्धांतों विचारों को दरकिनार करने से गुरेज़ नहीं करते हैं।राजनीति में चुनाव के समय राजनेताओं का असली चेहरा सामने आ जाता है और चुनाव लड़ने के लिए पल झपकते ही गिरगिट की तरह रंग बदलकर पाला बदलने के साथ उसूल सिद्धांत एवं भाषा भी बदल लेते हैं।इतना ही नहीं चुनाव लड़ने एवं सरकार बनाने के लिए देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों को गले मिला लेते हैं।इस समय आगामी लोकसभा चुनावों में एक बार भी उसूलों सिद्धांतों विचारों से समझौते होने लगे हैं। राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए एक बार फिर उसूलों विचारों से समझौते करने लगे हैं।टिकट के लिए दुश्मनों को दोस्त एवं दोस्तों को दुश्मन बनाने का दौर शुरू हो गया है।भाजपाई कांग्रेसी बन रहे हैं तो कांग्रेसी भाजपाई तो सपा बसपा एक दूसरे के दोस्त बन रहे हैं।मात्र चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलने के उद्देश्य से शेर और बकरी एक घाट पर आ रहे हैं।जिन राजनेताओं के टिकट कट गये हैं वह टिकट लेकर चुनाव लड़ने के लिए किसी भी दल से समझौता करने में जरा भी हिचक नहीं रहे हैं।बेमेल राजनैतिक समझौतों का दौर शुरू हो गया है और राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए उसूलों विचारों सिद्धांतों की बलि चढ़ने लगी है।राजनैतिक दलों के अंदर चल रही वर्चस्व की लड़ाई के चलते राजनेताओं को मजबूरी में उसूल सिद्धांत बदलने पड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने विरोधियों को अपनी औकात के साथ उनकी औकात दिखाने के लिए उन्हें मजबूरी में दल ही नहीं बल्कि दिल का भी परिवर्तन करना पड़ रहा है वह फिर चाहे शत्रुघ्न सिन्हा हो चाहे जयप्रदा आदि हो।राजनीति में क्षणिक राजनैतिक लाभ के लिये उसूलों सिद्धांतों विचारों से समझौता करना लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र एवं देश के हित में कतई नहीं कहा जा सकता है।धन्यवाद।। भूलचूक गलती माफ।। सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।ऊँ भूर्भुवः स्वः------/ऊँ नमः शिवाय।।।
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भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।
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