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राजनीति में तार तार होती लोकतांत्रिक मर्यादाएं और विचारों उसूलों सिद्धांतों को ताक पर रखकर बनते गठबंधनों पर विशेष

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राजनीति में तार तार होती लोकतांत्रिक मर्यादाएं और विचारों उसूलों सिद्धांतों को ताक पर रखकर बनते गठबंधनों पर विशेष-
🇮🇷सुप्रभात-सम्पादकीय🇮🇷
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साथियो,

लोकतंत्र में राजनीत ऐसी बला है जिसमें रिश्तो का कोई महत्व नहीं होता है इसमें रिश्ते टूटते और बनते हैं। वैसे तो राजनीति लोकतांत्रिक मर्यादाओं में होनी चाहिए किंतु सत्ता तक पहुंचने के लिए लोकतांत्रिक मर्यादाओं का भी कोई महत्व नहीं रह गया है। इतिहास साक्षी है कि जब राजतंत्र था तब भी सत्ता हथियाने के लिए बेटा बाप को मारकर गद्दी पर बैठ जाता था। आजादी के बाद तमाम  मौके ऐसे आए हैं जिसमें मां बेटे और बाप राजनीति के चलते सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए एक दूसरे के सामने आकर एक दूसरे की बुराई से नहीं चूके हैं। राजनीति में सत्ता एक ऐसा सुख है जिसे पाने के लिए सभी आतुर रहते हैं और जरूरत पड़ने पर शेर और बकरी की तरह घाट पर पानी पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। आजादी के बाद सत्ता पाने के लिए होने वाले गठबंधन इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है राजनीतिक गठबंधन विचारों उसूलों और सिद्धांतों को ताक पर रखकर राजनीतिक बिपाशा पूरी करने के लिए बनाए जाते हैं यही कारण है की यह राजनीति गठबंधन ज्यादा समय तक टिकाऊ नहीं रह पाते हैं और कुछ ही दिनों बाद टूट कर तार-तार हो जाते हैं चाहे वह  जम्मू कश्मीर के राजनैतिक दल हो चाहे इमरजेंसी के दौरान बना गठबंधन हो चाहे चाहे इमरजेंसी के बाद बना जनतांत्रिक गठबंधन हो। इस समय भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिये  गठबंधन बनाने का दौर चल रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव मैं जीतकर सभी सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के लिए आतुर हैं। एक समय वह  भी था  जबकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव एक राजनीतिक स्तंभ थे और उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव लक्ष्मण की तरह भूमिका निभा रहे थे तथा दोनों की मर्जी के बिना पार्टी में एक पत्ता भी नहीं हिलता था लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब की उनके ही एक  दूसरे भाई और बेटे ने मिलकर उन्हें दूध की मक्खी की तरह हटाकर खुद उनकी जगह गद्दी पर बैठ गए और उन्हें संरक्षक बना दिया गया था एक समय वह भी जबकि लालकृष्ण आडवाणी जैसे तमाम वरिष्ठ लोग भाजपा की डूबती नौका के खेवनहार हुआ करते थे लेकिन एक समय वह भी आया जबकि उन्हें किनारे लगा दिया गया। एक समय वह भी था जबकि कांग्रेश एक तरफ की और सभी विपक्षी दल एक मंच पर उसके खिलाफ थे और उसे भला बुरा कह रहे थे लेकिन एक समय वह भी आया जबकि भाजपा को छोड़कर सभी विपक्षी एक मंच पर आने के लिये मजबूर हो गये हैं। इसी तरह एक  वक्त ऐसा भी था जबकि समाजवादी और बहुजन पार्टी एक दूसरे के कट्टर दुश्मन की तरह थे और एक दूसरे को फूटी आँखों देखना तक पसंद नहीं करते थे आज वहीं दोनों सत्ता की लालच में एक दूसरे की गल बहिया डालकर एक साथ आ गए हैं। एक समय वह भी था जबकि समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव भाजपा को पानी  पी पी कर कोसते थे और उसे सांप्रदायिक बता कर उससे दूरी बनाए हुये थे लेकिन एक समय वह भी आया जबकि वहीं  भाजपा का गुणगान गाकर उसे दोबारा सत्ता में आने की शुभकामनाएं दे रहे हैं।धन्यवाद।। भूलचूक गलती माफ।। सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।। ऊँ भूर्भुवः स्वः-----/ऊँ नमः शिवाय।।।
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भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।

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